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कुछ यादों की डायरी : अप्रैल 2021

नोट : पिछली डायरियों का एक करेक्शन - विस्तार लिखना एक्चुअली जनवरी से शुरू हुआ था, जिसे बीच में छोड़ने के बाद फिर से लिखना शुरू किया, अभी पब्लिशिंग डेट देखने के बाद आंखे खुली🤭🤣


अप्रैल आते ही लोग अप्रैल फूल बनाने के चक्कर में मुझ कांटे से जा उलझे, मगर बिचाराें को की फूटी किस्मत, उन्हे क्या पता कि जिस पेड़ पर वो चढ़ना सीख रहे हैं उसी की सबसे ऊंची शाख से दातुन तोड़कर, उसी की शाख पर मैं झूला डाल के डाल कर मजे से दातुन करते हुए झूला झुला करता था। विस्तार आधी लिखने के बाद फिर उलझ चुकी थी, जीवन में गर्मी तो आई थी मगर खून में उबाल न आया था। नया फोन का ऑर्डर तो किया था मगर कोरोना देवता की असीम कृपा से डिले पर डिले होता जा रहा था। तभी चाचा श्री ने बताया कि नया फोन आने वाला है, एक हफ्ते के भीतर आ जायेगा, इसी बीच वर्षों बाद बड़ी मौसी के घर जाना हुआ, तो मैंने भी सोचा कि क्यों न कुछ लिख लिया जाए... फिर शुरू हुआ हमारा स्ट्रगल... मतलब संघर्ष.. सच्ची वाला लोग तो मानते भी नहीं कि कहानी लिखने में मेहनत लगती है, यहां मैं जनवरी वाला मार्च में लिख के... असली वाला देख के मुंह लटकाकर बैठा हुआ, हद है यार, अब तो लगता है मेरी याददाश्त भी जाती रही है...! मगर कमबख्त जा भी ना पा रही है।

तो फिर क्या हुआ बंदे ने शुरू की मेहनत, कैसे भी करके लिखने की, इधर एक हफ्ते में आने वाला फोन हमको अप्रैल फूल बनाते बनाते कांटा बना दिया मगर आया नहीं..! हमने कोशिश की स्टोरी कंटिन्यू रखूं पर ये दुख बस वही जान सकता है जिस किसी ने अपने फोन का सत्यानाश होते अपने हाथो में देखा है, मतलब आंखो से देखा है, पर हमने कोशिश की और मई के मिड तक फाइनली विस्तार समाप्त हो गई, किसी तरह..... ऐसे लगा जैसे सिर का बोझ उतर गया..! और अगले ही दिन चाचा श्री का कॉल आया कि तुम्हारा फोन आ गया, मुझे तो लगा जैसे वो भी यही चाहता था कि पहले तू स्टोरी खत्म कर फिर मैं आता हूं।

पर नया फोन भी कुछ खास पसंद नहीं आया, चार घंटे में चार्ज होता था, ये दुख अब तक के सभी दुखो से नेक्स्ट लेवल का था, फिर देखा कि एक बार चार्ज करो तो 16+ घंटे चलेगा, फिर क्या चल भाई यही चला ले, क्या पता कोरोना देवता क्या गुल खिला दें, घर में परदादा जी बीमार भी चल रहे थे जिस वजह से ये सब करने का कोई  औचित्य भी शेष नहीं था, घरवाले करने ही नहीं देते, एक तो हमारे गांव में डिलीवरी ही नहीं आती, ऊपर से किसी तरह आया समान वापिस लौटाकर कुछ अलग मंगाना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर था, वो भी दोनो पैरों पर....!

खैर अभी तो अप्रैल की ही बात कर लेते हैं, अप्रैल भी कुछ खास नहीं गुजरा, तेज धूप और गर्मी बढ़ती जा रही थी, मौसम परिवर्तन चरम पर पहुंचता जा रहा था मगर बीच बीच में बारिश भी होती रही..! अब इतना भी कुछ याद नहीं, सब विस्मृत हो गया है, तभी तो डेट गड़बड़ कर दे रहा, जबकि विस्तार जनवरी से शुरू होकर मई माह के मध्य तक चली थी। खैर जो भी था सब ठीक था, मई का महीना किसी अनहोनी को लिए हम सबका इंतजार कर रहा था, अप्रैल कैसे बिता इसका कुछ पता ही न चला... बस बीत गया..! फिर मिलते हैं..!

राधे राधे 🙏

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2 Comments

Arshi khan

21-Dec-2021 11:23 PM

काफी अच्छा डायरी लेखन है आपका...

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Swati chourasia

21-Dec-2021 08:07 PM

Chaliye aapka phone to aa gaya April me 👍

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